Tuesday, 21 January 2014

हम रात भर समेटते रहे टुकड़े दिल के.....

हम रात भर समेटते रहे टुकड़े दिल के,
 कल कोई तोड़ गया था यू गैरों मिल के,
पूछ ही ना पाये , उनसे सबब बेरुखी का,
 रह गये खामोश, अपने लवों को सिल के,
रोकना चाहा बहुत, उन्हें भी तुम्हारी तरह,
 बह गये अश्क, यू मेरी आँखो से निकल के,
कुछ सहमा सहमा सा था, कल मंजर सारा,
 जुवां भी खामोश थी, हाल देखे जो दिल के,
कुछ यू हो गया है, अब हाल इस दिल का,
 जैसे कोई फूल मुरझा गया हो, खिल क़े,
शौक बाकी है, गर दिल तोड़ने का तो कह दो,
 माँग लाऊ, एक और दिल खुदा से मिल के,



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